



मनुष्य जीवन पाकर एक संस्कारित परिवार में जन्म होना, यह बड़े सौभाग्य की बात है !
आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसी ही भारतीय संस्कृति और संस्कारों की परिचायक कथा वाचिका लक्ष्मी प्रिया जी की ।
लक्ष्मीप्रिया जी का जन्म उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ । बहुत कम आयु में लक्ष्मी प्रिया ईश्वर भक्ति में मग्न रहने लगी ।
ईश्वरीय भक्ति के साथ साथ लक्ष्मीप्रिया (आचार्य द्वितीय वर्ष) में अध्ययनरत हैं ! कथा की प्रेरणा उन्हें परम् पूज्य डॉ श्यामसुंदर पराशर जी महाराज से मिली ।
श्री रामचरितमानस में गोस्वामी जी महाराज ने कहा कि.. “अतिहरि कृपा जाहि पर होई | पांव देई एहि मारग सोई” वर्णन करते हुए गोस्वामी जी ने कहा कि दान, पुण्य, गंगास्नान, तीर्थ की इच्छा मन में होते हुए भी हर कोई इसे नहीं कर पाता। यह सब सत्कर्म व्यक्ति के चाहने से नहीं भगवान की कृपा से ही सम्भव हो पाते हैं। जिस पर भगवान की कृपा होती है उसका आचार,विचार रहन,सहन व्यवहार सब सुंदर हो जाता है ।
लक्ष्मीप्रिया जी ने कहा कि “यह शायद मेरे पूर्वजन्म के पुण्यकर्म का प्रतिफल है कि मेरा जन्म एक संस्कारी ब्राह्मण परिवार में हुआ और मुझे बचपन से ही संस्कार और भारतीय संस्कृति की शिक्षा अपने घर में मिली। उसी का सुफल है अध्यात्म और कथा वाचन के प्रति आस्था”
डॉ. अवधीहरि जी का एक कथन है कि सौ में दो-चार ही घरों में आजकल संस्कार मिलते हैं ।
ऐसे ही घर में जन्मी लक्ष्मीप्रिया, जहाँ बच्चों को संस्कार दिए जाते हैं। हाँ दूसरी ओर जहां आजकल आधुनिकता और अंग्रेजी माध्यम के चक्कर में संस्कार और भारतीय संस्कृति को भुला दिया गया है।
वहीं लक्ष्मी प्रिया ने घर में संस्कार और भारतीय संस्कृति की इन पुरातन परंपराओं को जन्म से ही देखा और सुना है इसके परिणामस्वरूप ही वो आध्यात्मिक यात्रा पर निकली और कथा समागमों का आयोजन करने लगी । लक्ष्मी प्रिया इसके प्रेरक श्री ठाकुर जी को ही मानती हैं।
लक्ष्मीप्रिया ने 12 दिसम्बर 2020 को श्रीमद्भागवत् महापुराण की कथा करना प्रारंभ किया ।
