



मंचपाने के लिए पूरी-पूरी रात बैठकर प्रस्तुति देने के लिए इंतजार करती कौशल्या आज हैं राजस्थानी मंचों की जानी-मानी लोक गायिका ।
आइए जानते हैं कौशल्या रामावत का वह संघर्ष जिसने उन्हें आज इस मुकाम तक पहुंचने में मदद की । बीकानेर के ठेठ राजस्थानी परिवेश में पली-बढ़ी कौशल्या गांव से लेकर बड़े-बड़े शहरों के मंचों तक पहुंची । पिता भौमदास जी के सानिध्य में रहकर कौशल्या ने लगभग आठ वर्ष की आयु से ही संगीत सीखना शुरू कर दिया था । स्कूलिंग के दौरान भी कौशल्या सांस्कृतिक कार्यक्रमों में प्रस्तुति देकर समां बांध दिया करती थी । संगीत के प्रति अगाध प्रेम एवं समर्पण के कारण कौशल्या ने महाराजा गंगा सिंह यूनिवर्सिटी से संगीत में ही स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की । पति प्रकाश वैष्णव ने भी उनकी कला का सम्मान किया और वह उनकी संगीत संध्याओं का प्रबंधन देखने लगे ।शालीनता और सादगी से परिपूर्ण कौशल्या भजन संध्याओं में राजस्थानी वेशभूषा में ही प्रस्तुति देती हैं । उनकी यह मर्यादित जीवन शैली इस बात की परिचायक है कि गरिमा में रहकर भी लोगों तक अपनी कला एवं अपने विचार पहुंचाए जा सकते हैं। उनकी हर प्रस्तुति मंच की गरिमा समझते हुए राजस्थानी वेशभूषा में होती है। शुरुआत के दिनों में जब वह मंच पर गाने के लिए जाया करती थी तब उन्हें मंच पाने के लिए पूरी-पूरी रात बैठकर इंतजार करना पड़ता था ।
लेकिन संगीत के प्रति प्रेम और बेहतर मुकाम पाने की ज़िद के आगे वह इंतजार उन्हें बहुत छोटा लगने लगा । धीरे-धीरे इंतजार का समय घटने लगा और आखिर वह दिन भी आ गया था जिसका कौशल्या को बेसब्री से इंतजार रहा करता था। बड़े-बड़े संगीत मंचों पर कौशल्या को सबसे पहले प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया जाने लगा । चाहने वाले श्रोताओं एवं प्रशंसकों की भीड़ से कौशल्या को अदांजा हो चला था कि उन पर देवी मां मेहरबान हो चुकी हैं । आज भी कौशल्या देश के कोने कोने में जाकर राजस्थानी लोक गीतों की गरिमामय प्रस्तुति देकर पूरे परिवार एवं राजस्थान को गौरवान्वित कर रही हैं ।
ऐसी संगीत साधिका को आइडल टाॅक्स का प्रणाम
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